Thursday, June 23, 2016

बच्चों का संसार

प्रज्ञा नतिनी सुमन की, बरस उम्र बस चार।
पर देखा तस्वीर में, दुलहन सा श्रृंगार।।

बिटिया, नतिनी या बहन,  नारी सदा अनूप।
आँखें हटती है नहीं, मोह लिया यह रूप।।

प्रज्ञा मेरी गजल को, गाती है भरपूर।
टूटे फूटे शब्द से, करती गम को दूर।।

रूप मनोहर जो यहाँ, टिकते जब तब नैन।
बिना चुहलबाजी किए, मिले न दिल को चैन।।

प्यारे से इस रूप पर, उमड़ पड़ा है प्यार।
सदा वयस्कों से अलग, बच्चों का संसार।।

1 comment:

राजीव रंजन गिरि said...

अद्भुत...
सटीक व्याख्या
आभार

http:rajeevranjangiri.blogspot.in/

हाल की कुछ रचनाओं को नीचे बॉक्स के लिंक को क्लिक कर पढ़ सकते हैं -
विश्व की महान कलाकृतियाँ- पुन: पधारें। नमस्कार!!!